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लघुकथा : ''खीर''

बेटा सुबह दस बजे खाना खाकर चला जाता था, बूढ़े पिताजी को आंख से न के बराबर दिखाई देता था। पिताजी दोपहर में खाना खाते थे।
इत्तेफाकन एक दिन जैसे ही बेटा खाने बैठा, पिता को आवाज लगा दी — 'खाना खा लीजिये पिताजी ।
पत्नी ने मना करते हुये कहा : अभी उनका खाना खाने का टाईम नहीं हुआ है।
बेटे की आवाज सुनकर पिताजी बेटे के पास आकर बैठ गये तो बेटे ने अपनी थाली पिताजी की ओर बढ़ा दी।
खाना खाते वक्त पिताजी ने खुशी जाहिर की :
''अरे वाह ! आज तो बहु ने खीर बनाया है।
आज भोजन करने में बहुत आनन्द आ रहा है बेटा !
बहुत दिनों से खीर खाने की इच्छा हो रही थी !''

बेटे का दिल धक से रह गया। बहुत मुश्किल से अपनी सिसकियों को रोक पाया।
आखों से लगातार आंसू झरने लगे।
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..... क्योंकि खीर तो रोज ही बनती थी।

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