जलते रेतिस्तान में गंगा बहा सकते है हम,
पेड़ पौधे और परिन्देको हंसा सकते है हम।
भूलकर मेरी भूजा को फिर कभी ललकारना,
जंगली गजराज को इंसान बना सकते है हम।
चक्षुवेधन हो गया ,सब देखते ही रह गए,
देखकर अपना प्रभाव पानी जैसे बह गए।
द्रोपदीने हारसे पुरूषार्थ का स्वागत किया,
हार से ही भार्या की नग्नता भी सह गए।
:- चुप रहना में से साभार
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